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नारायणी नारी
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” महाभारत की यह उक्ति हमें सदैव यह याद दिलाती रहती है कि नारी का स्थान सर्वोपरी है. वैदिक युग में भी नारी के महत्त्व को स्वीकार किया गया है. जीवन के सभी क्षेत्रों में नारी की प्रमुखता रही है. “नारी तू नारायणी” कहकर इसको सम्मान दिया गया हैं परन्तु आज नारी को एक अलग नज़र से देखा जा रहा है, नारी अपना हरेक रूप पूरी तरह से निभाती आ रही रही है. एक पुत्री, एक माँ एक बहन, एक पत्नी एक सखा सभी रूपों में उसने अपना कर्तव्य पूरा किया है और कर रही है और आगे भी करती रहेगी इसमें कोई संदेह नहीं हैं. उसका हर रूप पूजनीय है, अनुशंसनीय है, अनुकरणीय है, नारी आज आधी आबादी का हिस्सा मानी जाती है परन्तु यह बड़े ही खेद का विषय है की आज इस अति आधुनिक युग में, जिसमें मानवीय भावनाओं का स्थान धीरे- धीरे समाप्त होता जा रहा है नारी को लेकर एक अलग अवधारणा बनने लगी है यद्यपि आज वह अपने सबसे प्रखर रूप में हमारे सामने है. नारी को अबला और कमजोर कहने वालों को भी आज कई बार सोचना पड़ता है. आज की नारी मध्यकाल की नारी नही रह गई. अब हम यह नही कह सकते कि “अबला जीवन है तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आखो मैं पानी” की आज की नारी ने पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर यस साबित कर दिया है कि वह अब अबला नहीं रह गई. चिकित्सा, राजनीति, विज्ञान, तकनीकी, साहित्य और कला सभी क्षेत्रों में आज हम नारी को आगे पाते हैं लेकिन फिर भी कुछ लोग न जाने क्यों नारी को लेकर आशंकित रहते है? पिछले कई वर्षों से आवाज़ उठाई जा रही है महिला आरक्षण की. देश की संसद में बिल लंबित है लेकिन देश की महिलाएं पूछ रही है हमें आरक्षण क्यों ? अधिकार क्यों नही? आज नारी को अधिकार देने का समय है, उसे उसके अधिकार दें फिर देखे नारी शक्ति को, केवल महिला सशक्तिकरण का नारा देने से काम चलने वाला नही है महिलाओं का सशक्तिकरण तभी संभव हो सकता है जब हम उसे अधिकार देंगे, बिन अधिकार कैसा सशक्तिकरण? देश की संसद में बिल लंबित है राजनेता कह रहे हैं की पार्टियों में सीटें आरक्षित की जाये, चुनाव आयोग ने महिलाओं के प्रति उदारता दिखाते हुए उनके लिए साईट आरक्षित भी कर दी, जबकि देश का संविधान इसकी स्पष्ट व्याख्या करता है कि सभी को बराबरी के आधार पर चुनाव लड़ने और वोट डालने का अधिकार हैं. फिर भी महिलाओं के लिए आयोग ने एक कदम उठाया तो मन को सकूं मिला. लेकिन इस पुरुष प्रधान संस्कृति में (यद्यपि देश का एक बड़ा भाग नारी की सत्ता को स्वीकार करता है)महिलाओं की उपेक्षा कोई नई बात नही है. आज भी देश के अधिकांश हिस्सों में नारी को उसके अधिकार नही मिल सके हैं, देश की सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि आज हम पुत्री को इस संसार में आने से ही रोक रहें है लड़कियों का प्रतिशत आज लड़कों की अपेक्षा बहुत ही कम हो गया है और देखने में तो यह आया है कि देश के उन हिस्सों जिन्हें हम मेट्रोपोलिटन सिटी कटे हैं इनका प्रतिशत अत्यधिक कम हुआ हैं. हम बेशक पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते रहे लेकिन पुत्री को जन्म देना भी तो हमारा ही कर्तव्य है. अब वो दिन दूर नही होगा जब देश में लड़कों के स्थान पर लड़कियों की संख्या आधी ही रह जाएगी तो वह समय बड़ा ही कष्टदायी और विषम होगा, आज जो लगातार यौन हिंसा या बलात्कार जैसे दुष्कर्म हो रहें हैं इनका सबसे बड़ा कारण तो लडकियों का अनुपात कम होना ही है और यही हाल रहा तो आगे इस प्रकार की प्रवर्तियों को रोकने के लिए सभी उपाय कम और अनुपयोगी हो जायेंगे. हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि समय रहते हम चेत जाएँ अन्यथा इसकी भारी कीमत हमें चुकानी पड़ेगी जो शायद कोई भी नही चाहेगा. हमें अपनी सोच को आज बदलने की सख्त जरूरत है, नारी के प्रति भी और उसकी अस्मिता के प्रति भी, उसकी संवेदना को हमें समझना होगा. उसे अधिकार देने ही होंगे. इसमें लेशमात्र भी संदेह नही है कि नारी हर स्थिति में अपने आपको साबित कर पायेगी, हमें यह यद् रखना चाहिए कि नारी शक्ति का नाम है, उसके बिना इस संसार का कोई अस्तित्व नही रहेगा. इसलिए नारी का सम्मान सभी का प्रथम और आवश्यक कर्तव्य है. वह एक विश्वास है एक श्रद्धा है तभी तो महाकवि जयशंकर प्रसाद जी कह उठते है – “नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत-नग पगतल में पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में.”
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