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राजनैतिक परिवर्तन : आवश्यकता और औचित्य

Abhivayakti
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दिल्ली के चुनाव परिणामों के पश्चात दिल्ली में एक नई राजनैतिक व्यवस्था का सूत्रपात हुआ, जिसका सीधा असर न केवल दिल्ली की गद्दी पर आसीन श्रीमती शीला दीक्षित के राजनैतिक भविष्य पर पड़ा बल्कि दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष श्री विजय गोयल जी, पूर्व अध्यक्ष श्री विजेंद्र गुप्ता जी और दिल्ली में भाजपा के घोषित मुख्यमंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन जी का खेल भी बुरी तरह से बिगड़ गया। कांग्रेस जहाँ एक ओर किनारे पर आ लगी वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी को भी अपनी राजनैतिक सोच और दिशा को पुनर्निर्धारित करने के लिए मंथन करने की आवश्यकता आन पड़ी। जो भारतीय जनता पार्टी केवल और केवल कांग्रेस को अपना परंपरागत प्रतिद्वंद्वी मानती आई है उस भारतीय जनता पार्टी के लिए एक नया प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के रूप में उसे चुनौती देता हुआ उसके समक्ष खड़ा है। यही नहीं कांग्रेस और भाजपा के अतिरिक्त जो अन्य दल हैं उनकी स्थिति भी कमोबेस इसी प्रकार की है। आज आम आदमी पार्टी अन्य सभी राजनैतिक दलों के लिए विकट समस्या बन चुकी है। आम आदमी का चेहरा बने श्री अरविंद केजरीवाल जी और उनके विचार आज बड़ों-बड़ों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। कम से कम दिल्ली को राजनैतिक पार्टी के रूप में एक ऐसी सरकार मिली है जिसका दृष्टिकोण लीक से हट कर है परंतु केवल दृष्टिकोण को कायम करना और उसे सफल बनाना दोनों अलग-अलग कार्य हैं। दिल्ली में बनी सरकार को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है इसलिए आम आदमी की सोच और उस सोच की सार्थकता की परीक्षा अभी होनी शेष है। दिल्ली की सफलता से आम आदमी की खुशी का ठिकाना नहीं है परंतु आम आदमी को यह भी याद रखना होगा कि अब वह आम आदमी नहीं रह गया है बल्कि अब आम से खास हो गया है। देश की जनता की उम्मीद ने उसे एकाएक खास व्यक्ति की, खास सरकार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। अब स्वयं को आम आदमी कहने वाला यह उम्मीद बनाए हुए है कि अब वह व्यवस्था परिवर्तन करके अपने सारे कष्टों को दूर कर लेगा। दिल्ली सरकार के द्वारा हाल ही में दिल्ली सचिवालय के बाहर सड़क पर लगाया गया दिल्ली दरबार आम आदमी कि इसी उम्मीद का परिणाम है जिसके कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री को दरबार बीच में छोड़कर जाना पड़ा। दिल्ली की इस खास जनता की आम आदमी की सरकार से बहुत-सी उम्मीद अभी शेष हैं जिन्हें पूरा करना दिल्ली के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के लिए एक चुनौती ही है। बिजली और पानी की समस्या के लिए भी दिल्ली आर्थिक सहायता लिए बिना स्थाई समाधान चाहती है। आर्थिक सहायता का दूरगामी परिणाम बहुत लाभदायक रहने वाला नहीं है। इसका कुप्रभाव दिल्ली को भुगतना ही पड़ेगा। इसलिए दिल्ली हर समस्या का निश्चित और स्थाई समाधान चाहती है और आम आदमी की सरकार की यह नैतिक ज़िम्मेदारी भी बनती हैं कि वह दिल्ली की समस्याओं का स्थाई और दूरगामी समाधान खोजे। अस्थाई समाधान किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता अपितु वह तो उस समस्या को भविष्य में और भी विकट रूप देने का कारण बनता है। आज देश और देश के आम आदमी की आर्थिक दुर्दशा इसी आर्थिक सहायता की प्रवृति और पद्धति का परिणाम है। आज आम आदमी पार्टी की सरकार के सामने सबसे पहली और सबसे बड़ी चुनौती है ठिठुरती दिल्ली में रैन बसेरों में रहने वाले लोगों की। दिल्ली का तापमान 4 से 7 डिग्री सेल्सियस के बीच बना हुआ है ऐसे में दिल्ली में रात गुजारने वाले लोगों के लिए बनाए गए रैन बसेरों की उपलब्धता और गुणवत्ता दोनों का ध्यान देने की आवश्यकता है साथ ही यह भी सोचने की आवश्यकता है कि दिल्ली में जहाँ चारों और चकाचौंध दिखाई देती है वहाँ रैन बसेरों की आवश्यकता ही क्यों पड़ी? इन रैन बसेरों में रहने वाले लोग कौन हैं? क्या उनका अपना घर-द्वार नहीं है यदि नहीं तो वे दिल्ली के किस गाँव या क्षेत्र से हैं? इसकी पहचान करके उन्हें स्थायी तौर से आवास उपलब्ध करने की व्यवस्था भी दिल्ली सरकार को अब करनी है। लोग बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं। दिल्ली का एक बेहद खास तबका भी है जिसकी और कभी किसी का ध्यान नहीं जाता और वह तबका है मध्यम वर्गीय किरायदारों का तबका। जो दिल्ली में रोजी-रोटी के लिए आते हैं पर न तो झोपड़ पट्टी में रह पाते हैं और न ही वे अपना खुद का मकान दिल्ली जैसे महंगे शहर में बना पाते हैं कईयों की तो पूरी ज़िंदगी ही दिल्ली में किराए पर रहते बीत गई। अब मकान बनाना उनके लिए केवल एक सपना ही रह गया है। दिल्ली सरकार के द्वारा दी गई बिजली और पानी की छूट का लाभ भी इन लोगों को मिलने वाला नहीं है क्योंकि किराएदारी के कारण दिल्ली सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट का लाभ मकान मालिक ले जाएगा केवल वहीं किरायेदार को इसका लाभ होगा जहाँ मकान मालिक स्वयं नहीं रहता है या केवल इकलौता परिवार एक मकान में किराए पर रहता है। दिल्ली सरकार को इस और भी ध्यान देने की जरूरत है और बहुत अधिक जरूरत है क्योंकि दिल्ली की आर्थिक संवृद्धि में इन लोगों का हिस्सा बहुत बड़ा है और बहुत महत्त्व का है। अन्य दलों ने अभी तक इन लोगों की ओर कभी कोई ध्यान ही नहीं दिया! अनधिकृत कालोनियों में रहने वालों को भी दिल्ली सरकार से बहुत सी उम्मीद हैं। दिल्ली का राजनैतिक परिवर्तन न केवल राजनैतिक पार्टियों के लिए खास है बल्कि परिवर्तन का कारण बनने वाली आम आदमी पार्टी के लिए भी यह परिवर्तन विशेष महत्त्व रखता है। सरकार का कहना है कि आम आदमी की जरूरतें बहुत छोटी-छोटी होती हैं और यह बात है भी सच, इसीलिए आम आदमी अपनी इन मूलभूत और अति आवश्यक छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करना चाहता है जिसकी खातिर आम आदमी पार्टी को दिल्ली की गद्दी सौंपी गई है। आम आदमी पार्टी के सभी कार्यकर्ता स्वयं में आम आदमी होने का गौरव रखते हैं चाहे वे कितने ही खास क्यों न हों! फिर भी दिल्ली उन्हें आम आदमी के रूप में ही पहचानती है। दिल्ली का यह परिवर्तन यों ही नहीं हो गया! दिल्ली को आम आदमी पार्टी ने जो सुहाने सपने दिखाये थे दिल्ली उन सपनों को पूरा होते देखना चाहती हैं और वह भी बहुत जल्द। इसीलिए जनता दरबार बेहाल हो गया। दिल्ली की तर्ज पर ही अन्य राज्यों में भी लोगों की उम्मीदें जागी हैं। वे भी सस्ती बिजली और मुफ्त पानी तथा अन्य सुविधाओं को पाने की खातिर लालायित हो गए हैं और दिल्ली की इन सुविधाओं को ध्यान में रखकर ही वे आने वाले चुनावों में मतदान करेंगे। सभी पार्टियों को इस बात को जरूर मद्देनजर रखना चाहिए। दिल्ली का राजनैतिक परिवर्तन केवल दिल्ली में परिवर्तन नहीं कर रहा है अपितु दिल्ली के इस राजनैतिक परिवर्तन से देश में परिवर्तन का एक नया दौर शुरू होने वाला हैं। परंपरागत राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से परिवर्तित होने की दिशा में अग्रसर हो रही है। 2014 के चुनावों में इसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा ही यह बताने की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। केंद्र में परिवर्तन भी अब विशेष महत्त्व रखता है। प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में अब एक नाम और जुड़ गया है और वह नाम होगा आम आदमी पार्टी से संसदीय दल के नेता का। अब समीकरण एक अलग दिशा ले रहे हैं। दिल्ली विधान सभा के विश्वास मत के अवसर पर श्री अरविंदर सिंह लवली जी ने जो चुटकी ले थी शायद वह सच हो जाए और श्री नरेंद्र मोदी जी का प्रधानमंत्री बनने का सपना केवल सपना ही न रह जाए। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए भरसक प्रयास किए जाएंगे। उत्तर प्रदेश का समीकरण समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के बीच विभाजित मतदाता का समीकरण है। कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में कोई खास करिश्मा करने वाली नहीं हैं केवल परंपरागत सीटों पर इनकी जीत निश्चित है। राजनीति के क्षेत्र में नव निर्मित आम आदमी पार्टी अवश्य ही नए समीकरण बना सकती हैं। फिर भी नरेंद्र मोदी को रोकने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन बनता नज़र आ रहा है। हाँ, इसमें आम आदमी पार्टी की भागीदारी भी गठबंधन को मजबूती प्रदान कर सकती है परंतु इन सब बातों का निर्णय चुनाव परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट होगा। इसी प्रकार बिहार में भी कांग्रेस, लालू प्रसाद, पासवान और नितीश कुमार के बीच गठबंधन के आसार हैं। मध्य प्रदेश, ओड़ीशा, गोवा, झारखंड, आंध्रा और तेलंगाना क्षेत्र में कांग्रेस का गठबंधन बनने का आसार है ही। इस प्रकार कुल मिलाकर कांग्रेस और सहयोगी दल नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने में कामयाब हो सकते हैं। यदि कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाए तो इस पूरे खेल में एक बड़ा मोड़ आ सकता है। फिर भी आम आदमी पार्टी इस बार नि:सन्देह एक बड़ी भूमिका पूरे प्रकरण में अवश्य ही निभाएगी। इसलिए आम आदमी पार्टी और इस पार्टी के कार्यकर्ता अब आम नहीं रह गए हैं। इन्हीं सब कारणों से बड़े-बड़े नाम आम आदमी पार्टी के साथ अपना नाम जोड़ने को तैयार हो गए हैं। परंतु हमें इन सब बातों से परे वास्तविक आम आदमी के विषय में सोचना है कि इन सब परिवर्तनों से उसे क्या लाभ होने वाला है? हमें यह भी सोचना है कि इस नई राजनीति और व्यवस्था परिवर्तन से किसे और कितना लाभ मिलने वाला है। इस नई राजनैतिक नई व्यवस्था का औचित्य क्या होगा? क्या व्यवस्था परिवर्तन वास्तव में आम आदमी को नई दिशा प्रदान कर सकेगा या फिर केवल परिवर्तन मात्र रह जाएगा? देश के लोगों का कहना है कि आम आदमी की नई परिभाषा गढ़ने वाले दिल्ली के मुख्य सेवक नई व्यवस्था लाकर आम आदमी का कितना भला कर पाएंगे! श्री केजरीवाल जी और उनकी टीम के पास तब तक का ही समय है जब तक चुनाव आयोग की ओर से चुनाव की घोषणा जारी नहीं हो जाती। अधिसूचना जारी हो जाने के उपरांत केजरीवाल जी कोई विशेष कार्य नहीं कर पाएंगे इसीलिए समय रहते दिल्ली में समस्याओं का उचित निवारण अनिवार्य है। दिल्ली में किए गए कामों के आधार पर ही देश आम आदमी पार्टी का मूल्यांकन करेगा। परीक्षा जितनी कांग्रेस और भाजपा की है उससे कहीं ज्यादा आम आदमी पार्टी की हैं। यह और बात है कि इनके पास खोने को कुछ नहीं पाने को पूरा आकाश है। अब लोग देखना चाहते हैं कि है आम आदमी, आम आदमी पार्टी, आम आदमी की सोच और नई व्यवस्था परम्परागत राजनीति से कितनी हट कर हैं तभी इस परिवर्तन के औचित्य कि सार्थकता आम आदमी को समझ आ सकेगी।

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