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दिल्ली का दर्द

Abhivayakti
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दिल्ली का दिल बहुत बड़ा है। यह बात दिल्ली ने दिल्ली विधान सभा चुनाव के दौरान साबित भी कर दी। दिल्ली की लोकप्रिय मुख्यमंत्री जिस पर कई प्रकार के घोटाले करने के आरोप लगाए गए थे उन्हे दिल्ली की खास जनता ने आप के यानि कि आम आदमी पार्टी के कहने पर दिल्ली की सत्ता से अलग कर दिया और दिल्ली की गद्दी श्री केजरीवाल साहब को सौंप दी। केजरीवाल साहब ने अनोखे ढंग से दिल्ली को पानी पिलाया। बिजली वालों का पानी निकाला। फिर धरना दिया और दिल्ली पुलिस के दो अफसरों को छुट्टी पर भिजवाया एक दो को डांट भी पिलवाई। दिल्ली की जनता का दिल जीतने की भरपूर कोशिश दिल्ली के दिलदार मुख्यमंत्री ने की। जनलोकपाल का बिल भी केबिनेट में पास करवा लिया। फिर न जाने क्या ख्याल आया अपनी 49 दिन की सरकार का त्यागपत्र सीधे दिल्ली के उपराज्यपाल महोदय के पास जाकर जमा कर दिया। दिल्ली हक्की-बक्की रह गई। दिल्ली परिवहन निगम में काम करने वाले दैनिक मजदूर देखते रह गए। दिल्ली होम गार्ड में काम करने वाले अस्थाई कर्मचारी सदमे में आ गए। दिल्ली के रेहड़ी पटरी वालों को तो मानो साँप ही सूंघ गया। दिल्ली के ऑटो वालों का सपना टूट गया। सब के सब एक दूसरे से यही सवाल कर रहे थे केजरीवाल ने त्यागपत्र क्यों दिया? आखिर क्यों केजरीवाल जी बीच मैदान से भाग खड़े हुए? क्या द्वारकाधीश के समान लीला दिखाने का मन उन्होने बनाया है। लोगों ने इन्हें भी रणछोड़ दास कहना शुरू कर दिया है। अगर इन्होने वास्तव में युद्ध क्षेत्र से भागने का इरादा बनाया है तो जरूर इसके पीछे कोई न कोई कारण होगा जो अभी किसी को शायद समझ नहीं आ रहा है। जहां तक लोगों का मानना है उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के चलते इन्होने ये फैसला किया है ये काफी दिन से छह रहे थे कि किसी भी प्रकार कांग्रेस अपना समर्थन वापस ले और हम सारा ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ कर लोकसभा की तैयारी करें मगर कांग्रेस ने इनकी मुराद पूरी नहीं की तो जनलोकपाल के बहाने से इन्होने अपनी सरकार की कुर्बानी का फैसला किया ! मगर इसमें भी लोगों का कहना है कि दिल्ली में तो पहले से ही लोकयुक्त बिल पास किया हुआ है और जब दिल्ली के पास लोकयुक्त पहले से ही मौजूद है तो दूसरा बिल क्यों? यदि लोकयुक्त पहले से ही है तो उसी कानून में संशोधन करके जनलोकपाल वाले लोकयुक्त की शक्तियाँ दिल्ली के लोकपाल को प्रदान की जा सकती थी ! मगर ऐसा हुआ नहीं या फिर किया नहीं गया ! या फिर लोग गलत कहते हैं कि दिल्ली में पहले से ही लोकयुक्त बनाया हुआ है ! सच्चाई जो भी हो इतना तो तय है ही और सभी का मानना भी है कि दिल्ली की गद्दी छोड़ने के पीछे की कहानी कुछ और ही है और वह कहानी है लोकसभा चुनाव की तैयारी? तभी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक के बाद एक निर्णय इस प्रकार लिए कि सब यह भी देख ले कि आप काम कर रही है और कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही गुनहगार भी ठहरा दिया जाए और केजरीवाल जी ने किया भी कुछ ऐसा ही। मगर जनता माननीय मुख्यमंत्री जी (अब निवर्तमान) से यह जानना जरूर चाहती है कि क्या केवल एक ही मुद्दा था जिसे पूरा करना था बाकी मुद्दों का क्या हुआ? क्या बाकी के 17 वायदे पूरे किए जा चुके? यद्यपि हाँ तो फिर बिन्नी और दूसरे सदस्यों ने बगावत क्यों की ? क्यों नहीं दिल्ली में बिजली के बिलों को आधा किया गया केवल 400 यूनिट तक खपत करने वालों को ही आंशिक छूट का लाभ क्यों दिया गया ? 50 प्रतिशत बिजली के बिलों को कम करने की बात कही गई थी यहाँ तो उल्टे फिक्स्ड चार्ज बढ़ा दिये गए? आखिर ऐसा क्यों हुआ यह भी जनता जानना चाहती है। एक आम आदमी ने जिस उम्मीद से श्री अरविंद केजरीवाल साहब को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया था वे आम आदमी की उस उम्मीद पर खरे नहीं उतर पाएँ हैं। एक के बाद दूसरे काम को वे अधूरा ही छोडते नज़र आयें हैं। इसका सीधा-सा संकेत तो यही है कि श्री केजरीवाल साहब में कहीं न कहीं सब्र की कमी है। इतनी अधिक बेसबरी अच्छी नहीं है। न श्री केजरीवाल जी लिए न आप के लिए न आम आदमी के लिए और न ही दिल्ली के लिए। जो केजरीवाल जी टीवी पर कहा करते थे कि देश कि पार्टियों को राजनीति करनी नहीं आती इन्हे राजनीति करनी हम सिखाएँगे। 49 दिन की दिल्ली की राजनीति में जो उथल-पुथल दिखाई दी उससे एक नई राजनीति तो सीखने को मिली और वह यह कि कुछ लोगों के खिलाफ बोलो, भीड़ इक्कठी करो और उस भीड़ को भेड़ बनाकर अपने तरीके से उसका दुरुपयोग करते जाओ। इन्होने भीड़ तंत्र को भेड़ तंत्र में बादल दिया। मुफ्त की खैरात बांटने की जो शुरुआत इन्होने की है उसका दूरगामी परिणाम देश और जनता के हित में नहीं है। देश की जनता को भी यह मंथन करना ही होगा कि उसे क्या चाहिए देश की उन्नति या सत्ता लोलुप स्वार्थी लोगों का झुंड? देश के मीडिया को भी अपनी व्यावसायिकता वाली प्राथमिकता को त्यागकर देश हित में जनता को उचित-अनुचित का ज्ञान करने की कोशिश करनी चाहिए। चढ़ते हुये सूर्य को अर्घ्य देने के समान केवल व्यक्ति विशेष का गुणगान करना देश के सबसे शक्तिशाली आधार स्तम्भ की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। इसलिए मीडिया को अपनी भूमिका के प्रति बेहद सतर्क होकर अपनी राय देनी चाहिए। श्री केजरीवाल जी ने दिल्ली और देश की जनता का तो विश्वास तोड़ा ही है साथ ही इन्होने भविष्य में इसप्रकार के आंदोलनों के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया दिया है। देश का प्रधान मंत्री बनने का सपना देखना गलत नही है इसका अधिकार सभी को है मुझे भी लेकिन दूसरे की टांग खींचकर उसे नीचे गिराकर ऊपर चढ़ना किसी भी प्रकार से उपलब्धि नही मानी जा सकती। श्री अरविंद केजरीवाल जी और उनके साथियों ने दिल्ली में जो अपरिपक्वता दर्शाई है उसने दिल्ली की जनता को सोचने के लिए मजबूर अवश्य ही कर दिया है। अब बारी दिल्ली की जनता और देश की जनता की है उसे गंभीरता से अपनी स्वयं की सोच को विकसित करना होगा भेड़चाल का हिस्सा बनने से बचना होगा। दिल्ली पर देश की नज़रें टिकी होती हैं दिल्ली जो करती है देश उसकी प्रतिक्रिया करता है इसलिय दिल्ली का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह अपनी स्वच्छ, स्वस्थ और मजबूत सोच को विकसित करे और गंभीरता के साथ देश कि राजनीति में अपनी भूमिका का निर्वहन करे।

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